Tuesday, November 2, 2010

पुष्प नक्षत्र में मैं और मेरी पत्नी

शनिवार को पुष्य नक्षत्र था, करोड़ों का व्यापार हुआ। मीडिया ने भी खूब प्रचार किया। करता भी क्यों नहीं विज्ञापन जो लेने थे। पैसा कमाना तो हर किसी की चाहत होती है, लेकिन एक बात मेरे जैसे कम बुद्धि वाले को आज तक समझ में नहीं आई कि इस प्रकार के नक्षत्र हमेशा त्योहार के आस-पास ही क्यों आते हंै। विशेषकर दीपावली के। मेरी पत्नी भी सुबह आंख खुलने के बाद से लेकर ऑफिस जाने के समय तक कभी ताने देकर तो कभी बैंक के खाते से पैसे निकाल कर आभूषण खरीदने की धमकी देती रही। थोड़ी देर बाद पलंग पर ही चाय के साथ अखबार भी ले आई और सबसे पहले पुष्य नक्षत्र से होगा बाजार रोशन होने की खबर सुनाई। साथ ही खबर का वह बॉक्स पढऩे को कहा, जिसमेेंं लिखा था कि यह नक्षत्र तीस वर्ष बाद पढ़ रहा है। चूंकि पत्रकार और मास्टर की संतान हूं इसलिए धनवान तो हूं नहीं। बस इतना जानता हूं की मुसीबत से कैसे निकला जाए। तो मुस्करा कर कहा अच्छा देखते हैं पर पहले चाय पीते हैं। मुस्कराना भारी पड़ा। श्रीमती जी ने विज्ञापन दिखाना शुरू कर दिए कि कहां कौन सा ऑफर है। आखिरकार बचाव की मुद्रा में आना ही पड़ा और घर के उस कौने की सफाई करना शुरू कर दी जो काफी गंदा था। पत्नी है इसलिए उसे भी काम में लगना पड़ा। सेफ जोन में पहुचने के बाद हिम्मत कर और मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करते हुए पत्नी से कहा जल्दी काम निपटा लो फिर बाजार चलेंगे। प्रार्थना ईश्वर ने सुनी और चार बजे तक काम खत्म नहीं हुआ, तभी मेरी प्यारी बिटिया बोली पापा चार बज गए ऑफिस का समय हो गया, आपको जाना नहीं है क्या? पत्नी भी बोली अब तुम नहा लो प्रेस जाने में देर हो जाएगी। एक पल तो खुशी हुई चलो बच गया रात ढाई बजे आऊंगा तब तक नक्षत्र-वक्षत्र खत्म हो जाएंगे, लेकिन मन दुखित भी था कि हम जैसे लोग मन को मारते हैं और छोटी-छोटी बातों में खुशियों को तलाशते हैं। एक वह वर्ग है (धनाढ्य), जिनके लिए हर दिन दिवाली और हर दिन होली होती है। जो खुशियां मनाने के बहाने तलाशते हैं। काफी माथा पच्ची करने के बाद समझ में आया की असल में यह नक्षत्र-वक्षत्र अपुन जैसे लोगों के लिए नहीं बना। बना भी ऐसे ही लोगों के लिए है। पिसना तो हम जैसे मध्यम दर्जे के लोगों को ही है।
भाई अपुन जैसे लोगों को एक मुफ्त में सलाह देना चाहता हूं अगर समझ में आए तो ठीक नहीं तो ठीक, क्योंकि कल अब धनतेरस भी है। कभी कोई नक्षत्र और दिन पड़े तो स्वयं को और संतान को बताएं कि अमुक नक्षत्र में पढ़ाई करने, पूजा पाठ करने, दीन दुखियों की ज्यादा सेवा करने और अपने काम को पूर्ण ईमानदारी व मनोयोग से करने का सकंल्प लें ताकि यह कार्य भी अक्षुण रहे और जीवन खुशहाल बने। ऐसा जो भी व्यक्ति करेगा वह भी एक न एक दिन उन लोगों की श्रेणी में शामिल हो जाएगा जो ऐसे नक्षत्रों व दिनों में दुखी नहीं होते, मन नहीं मारते।