Monday, August 9, 2010

...ऐसे तो हम बेमौत मर जाएगें

मुझे याद है वह दिन जब चौखेलाल शर्मा जी मेरे घर चार जीने चढ़ कर आया करते थे। मेरे पिता जी प्राइमरी स्कूल के शिक्षक थे और घर पर भी बच्चों को टयूशन पढ़ाते थे, लेकिन उनके भी अपने आदर्श थे। टयूशन सिर्फ अमीरजादों को पढ़ाते है गरीब के लिए तो सिर्फ पढ़ाते थे वह भी एक घंटा नहीं जिस समय चाहे उस समय उसके लिए घर के दरवाजे हमेशा खुले रहते थे। कारण साफ था मेरे पिता ने गरीबी की विभीषका देखी थी।जिस व्यक्ति के सिर पर से मां- बाप का साया जन्म के मात्र तीन माह के अंदर उठ गया हो। बड़ा भाई अजीविका की तलाश में घर छोड़कर चला गया हो स्वाभाविक है जीवन कैसे गुजरा होगा। हां बात शर्मा जी की चल रही थी सौ बताता हूं। शर्मा जी अपने चारों पुत्रों को पढऩे के लिए छोडऩे आते है उनका सिर्फ एक ही शब्द रहता था मिश्रा जी इनकी हड्ड्यिा मेरी है और खाल आपकी। बस आदमी बना दो। आज शर्मा जी के चारों पुत्र टाप क्लास अधिकारी है और कुछ तो सेवानिवृत होने वाले है। मुझे वह भी याद है जब मेरे पड़ौस में रहने वाले स्वीपर ने मेरे बड़े भाई को सिर्फ इसलिए मार दिया था कि उसने स्कूल से आते वक्त बस्ता मौहल् ले के पार्क की दीवार पर रख दिया था जिसे उसका भैसा खीच रहा था और स्वयं खेलने में मस्त था जबकि दूसरे रोज पेपर था। जब इस बात की जानकारी मेरे पिता जी को लगी तो वह स्वीपर से लडऩे नहीं गए बल्कि उसे बुलाकर खुली छूट दी की अगर कहीं भी राजू (मेरा बड़ा भाई) उधम मचाता मिले तो उसे छोडऩा मत । पहले के लोग ऐसे हुआ करते थे। आज भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है। अगर किसी शिक्षक का शिष्य बीच बाजार में उसके पैर छूता है और अगर वह किसी बड़ी पोस्ट पर है तो और अच्छा और अगर किसी पिता की पहचान उसके पुत्र से होती है । उक्त दोनों समय जितनी खुशी इनकों होती है उसे शब्दों से अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता और उस समय दिए गए इनके आशीर्वाद को कोई भेद नहीं सकता। भगवान राम के इस देश में जहां पिता अपना वचन पूरा कर सके पुत्र खुशी- खुशी 14 वर्ष का वनवास काट लें। कृष्ण की इस धरा पर जहां दूसरे की कोख से जन्में कान्हा को मां यशोदा प बाबानंद अपने स्वजन्में पुत्र से अधिक दुलार दें और पालन पोषण करें। सच्चे गुरु से शिक्षा ग्रहण करने के लिए सूर्य पुत्र को छूट बोलना पड़े। ऐसी भूमि पर ही जन्में देश के नेता अब एक नया कानून बनाने जा रहे है कि कोई भी पालक व शिक्षक अपने पुत्र- पुत्र व शिष्य को मारपीट नहीं सकेंगा। अगर ऐसा करेंगा तो उसे सजा दी जाएगी। ऐसा क्यों क्योंकि हम 21 वीं शताब्दी में पहुंच गए है। गरीबी , भूखमरी , आंतकवाद, अशिक्षा महंगाई जैसी समस्याओं में हम विश्व में कोई न कोई स्थान रखते है इसलिए हमे अमेरिका जैसे राष्ट्रों मेें बने इस कानून को अपने देश में भी लागू करना चाहिए ताकि हम अपनी संस्कृति नष्ट करने, संस्कार मारने वालों की श्रेष्ठी में भी कोई न कोई स्थान बना ले। जब संस्कृति नष्ट हो जाएगी, संस्कार क्षीण हो जाएग। दुआओं का स्थान बदुआएं ले लेगी। फिर भला हमे किसी को मारने की जरुरत ही कहा पड़ेगी। सब कुछ स्वत: समाप्त हो जाएगा। मेरे देश के कर्णधारों इस कानून को लागू मत करों करना है तो लागू करों।
- अमेरिका में प्रावधान है अगर महिला का पति मर जाए तो उसके बच्चों की पढ़ाई व जीवन यापन का पूरा खर्च सरकार उठाती है और उसका कोई क्राइट ऐरिया नहीं है। मसलन जैसा अपने यहां पर तमाम योजनाओंं को लागू करते समय किया जाता है। कि गरीब हो, फला जाता का हो, आय इतनी हो आदि- आदि।
- अमेरिका में हर कर्मचारी- विजनिस मेन चाणक्य नीति का एक सूत्र वाक्य ( अपनी आय का 25 प्रतिशत भाग) दान में देता है कुछ तो इससे भी ज्यादा देते है। क्या भारत में कोई ऐसा करता है। नहीं। सिर्फ कुछ लोग।
- एकता की मिशाल वल्र्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के बाद जो कुछ वहां हुआ सब ने देखा। भारत में देश की अस्मिता पर हमला होने के बाद सिर्फ गाल बजाए गए।
- अमेरिका में भीखरी नहीं मिलते। हर व्यक्ति काम की चाहत रखता है। भारत में क्या स्थिति है सब को पता है।
- अमेरिका में एक प्रतिभा पलायन करती है तो हडकंप मच जाता है। भारत में ठीक इसके विपरीत है।
मेरा कहना यह बिल्कुल नहीं है कि भारत में सिर्फ बुराईयां ही बुराईया है। अमेरिका में बहुत सारी बुराईयां है, लेकिन हम अपने बुजुर्गों से सीख सकते है जैसा की संविधान रचियता डॉ. अम्बेडकर ने संविधान की रचना करते समय किया और विश्व का सबसे अच्छा संविधान दिया। सिर्फ अच्छाई को ग्रहण करो बुराई को छोड़ दो।
ऐसा नहीं कि भाई मैं अमेरिका का फैन हूं या फिर मैं कभी अमेरिका गया हूं, लेकिन यहां जानकारी मेरे को वहां रहने वालों से मिली है और कुछ वक्त ने अनुभव भी करा दी है।

3 comments:

लोकेन्द्र सिंह said...

ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है। लेख शानदार रहा। बिल्कुल सही कहा आपने कि अच्छाईयों को स्वीकार करो। हमारे नीति-निर्माता जमीनी स्तर पर सोचे-समझे बिना नीतियां बना देते हैं। यही कारण है कि देश के विकास के लिए तमाम योजनाएं और नीतियां बनाई गईं हैं। चूंकि वे सब किसके लिए और क्यों बनाई हैं साथ ही उसे उन्हें कैसे साकार किया जाएगा यह सोचा ही नहीं। तो भाई तमाम वे योजनाएं और नीतियां बेकार सड़ रही हैं।

Anonymous said...

haha, nice post

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
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